महामङ्गलसुत्त  जीवन को सार्थक बनाने में सहायक सिद्ध होता है | महामङ्गलसुत्त  जीवन में कल्याण,मंगल प्रदान करनेवाले सत्कर्म करने को प्रवृत्त करता है और साथ ही दुष्कर्म करने से परावृत्त करता है |

महामङ्गलसुत्त का पालि साहित्य में स्थान :

मङ्गलसुत्त  को महामङ्गलसुत्त भी कहा जाता है | महामङ्गलसुत्त  पालि साहित्य का महत्वपूर्ण सुत्त है |   महामङ्गलसुत्त  का समावेश सुत्तपिटक के खुद्दकनिकाय के अंतर्गत होता है | महामङ्गलसुत्त  खुद्दकपाठ और सुत्तनिपात  में सम्मिलित है |

महामङ्गलसुत्त

बहू देवा मनुस्सा च, मङ्गलानि अचिन्तुयुं    |

आकङ्खमाना सोत्थानं, ब्रूहि मङ्गलमुत्तमं ||१ ||    

(बहुत से देवता और मनुष्य कल्याण की आकांक्षा करते हुए मंगल धर्मों के संबन्ध में चिंतन करते रहे है | आप ही बताइये कि उत्तम मंगल क्या है?)

असेवना बालानं, पण्डिताञ्च सेवना |

 पूजा पूजनीयानं, एतं मङ्गलमुत्तमं       || २ ||  

(मूर्खों की संगति न करना,पंडितों (बुद्धिमानों )की संगति करना और पूज्यजनों की पूजा करना-यह उत्तम मंगल है |)

पतिरुपदेसवासो च, पुब्बे कतपुञ्ञता |

अत्तसम्मापनिधि च, एतं मङ्गलमुत्तमं         || ३ ||

(अनुकूल स्थानों में निवास करना, पूर्व में किए गए पुण्य कर्मों का संचित होना और अपने मन को सन्मार्ग पर लगाना – यह उत्तम मंगल है |)

बाहुसच्चञ्च सिप्पञ्च, विनयो सुसिक्खितो |

सुभासिता या वाचा, एतं मङ्गलमुत्तमं         || ४ ||

(विद्यासम्पादन,कलासम्पादन, विनीत, सुशिक्षित होना और सुभाषण करना- यह उत्तम मंगल है |)

मातपितु उपट्ठानं, पुत्तदारस्स सङ्गहो           |

अनाकुला कम्मन्ता, एतं मङ्गलमुत्तमं       || ५ ||    

(माता-पिता की सेवा करना, पुत्र-स्त्रि(परिवार ) का पालन-पोषण करना   और  अनाकुल कर्मों का न  करना – यह उत्तम मंगल है |)

दानंञ्च धम्मचरिया ञातकानं ञ्च सङ्गहो |

अनवज्जानि कम्मानि, एतं मङ्गलमुत्तमं       || ६ ||    

(दान देना, धम्माचरण करना, बंधु-बान्धवों का आदर-सत्कार करना और अन-वर्जित कर्म   करना- यह उत्तम मंगल है |)

आरति विरति पापा, मज्जपाना संयमो |

अप्पमादो धम्मेसु, एतं मङ्गलमुत्तमं     || ७ || 

(पापों से विरत रहना, मद्यपान न करना और धम्म-पालन में तत्पर रहना -यह उत्तम मंगल है |)

गारवो निवातो च, सन्तुट्ठि कतञ्ञुता |

कालेन धम्मस्सवनं, एतं मङ्गलमुत्तमं     || ८ || 

(गौरव करना,विनम्र रहना, संतुष्ट रहना ,कृतज्ञ होना  और समय-समय पर सद्धम्म-श्रवण करना – यह उत्तम मंगल है |)

खन्ति सोवचस्सता, समणानं ञ्च दस्सनं |

कालेन धम्मसाकच्छा, एतं मङ्गलमुत्तमं     || ९   ||   

(क्षमाशील होना, आज्ञाकारी होना, श्रमणों का दर्शन करना और समय-समय पर धम्म की चर्चा करना -यह उत्तम मंगल है |)

तपो ब्रम्हचारियञ्च, अरियसच्चान दस्सनं |

निब्बानसच्छिकिरिया च, एतं मङ्गलमुत्तमं || १०    || 

(तप, ब्रह्मचर्य, आर्यसत्यों का दर्शन और निब्बान का साक्षात्कार करना – यह उत्तम मंगल है|)

फुट्ठस्स लोकधम्मेहि, चित्तं यस्स कम्पति |

असोकं विरजं खेमं, एतं मङ्गलमुत्तमं || ११   || 

(जिसका चित्त लोकधर्म में अस्थिर नहीं होता है, वह शोकरहित, निर्मल तथा निर्भय रहता है – यह उत्तम मंगल है|)

एतादिसानि कत्वान, सब्बत्थ अपराजिता |

सब्बत्थ सोत्थिं गछन्ति, तं तेसं मङ्गलमुत्तमं || १२   ||  

(इस प्रकार के कार्य करके सर्वत्र अपरजित हो स्वस्तिसुख को प्राप्त करते है यह उनके लिये उत्तम मंगल हैं |)

महामङ्गलसुत्त  की  शैली :

महामङ्गलसुत्त  गद्य- पद्य मिश्रित शैली में रचित किया गया है | पालि साहित्य के रचना शैली में   प्रश्नोत्तर शैली भी पायी जाती है | महामङ्गलसुत्त  मे भी प्रश्नोत्तर शैली दिखाई देती है | महामङ्गलसुत्त के प्रारम्भ की गाथा में भगवान बुध्द को प्रश्न पूछा गया है

बहू देवा मनुस्सा च, मङ्गलानि अचिन्तुयुं    |

आकङ्खमाना सोत्थानं, ब्रूहि मङ्गलमुत्तमं    ||१ ||    

(बहुत से देवता और मनुष्य कल्याण की आकांक्षा करते हुए मंगल धर्मों के संबन्ध में चिंतन करते रहे है | आप ही बताइये कि उत्तम मंगल क्या है?)

जिसका उत्तर भगवान द्वारा शेष ग्यारह गाथाओं में दिया गया है |

महामङ्गलसुत्त  का  उपदेश :

महामंगलसुत्त  के प्रारम्भ में ही उल्लेख किया गया है की –

एकं समयं भगवा सावत्थियं विहरति जेतवने अनाथपिण्डिकस्स आरामे’

(एक समय भगवान श्रावस्ती के जेतवन अनाथपिण्डिक आराम में विहार कर रहे थे )

अर्थात इससे स्पष्ट होता है की  महामंगलसुत्त  का उपदेश  भगवान ने  श्रावस्ती के जेतवन महाविहार में दिया था |

 

महामङ्गलसुत्त  का महत्व :

 बौद्ध देशों में मङ्गलसुत्त  या महामङ्गलसुत्त  का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है | बौद्ध देशों में रतनसुत्त, मेत्तसुत्त और साथ ही  महामङ्गलसुत्त  के नित्य दैनिक  पाठ की परम्परा है |यह सभी मंगल धर्म  मनुष्य को  कल्याण के मार्ग पर उत्तरोत्तर आरूढ़ करते है | इनका अनुसरण करने वाले  मनुष्य हमेशा प्रगति पथ पर आगे बढ़ते हुए अपने कल्याण   को प्राप्त कर लेते है |

आइये महामङ्गलसुत्त   का पठन और अनुसरण करते हुए मनुष्य जीवन को सार्थक बनाये……..

 

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