पालि भाषा और साहित्य दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। पालि साहित्य के अध्ययन से प्राचीन ऐतिहासिक, भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक तथ्य प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार पालि साहित्य में चिकित्सा संबंधी ग्रन्थ भी लिखे गए हैं। पाली साहित्य में चिकित्सा संबंधी एकमात्र ग्रन्थ भेसज्जमञ्जूसा है।
भेसज्जमञ्जूसा का अर्थ :
‘भेसज्जमञ्जूसा ’ यह शब्द दो शब्दों ‘भेसज्ज’ और ‘मञ्जूसा’ से मिलकर बना है। ‘भेसज्ज’ का अर्थ है औषधि और ‘मञ्जूसा’ का अर्थ है पेटी । भेसज्जमञ्जूसा का शाब्दिक अर्थ है औषधि की पेटी ।
भेसज्जमञ्जूसा के लेखक :
भेसज्जमञ्जूसा की रचना तेरहवीं शताब्दी में श्रीलंका में हुई थी। भेसज्जमञ्जूसा के स्थान और काल के बारे में कोई मतभेद नहीं है। लेकिन इस ग्रंथ के लेखक के बारे में मतभेद है। आर्यदास कुमारसिंह के मतानुसार, अनोमदस्सी संघराज ने भेसज्जमञ्जूसा की रचना की है। जी.पी. मलालशेखर और राहुल संस्कृत्यायन के अनुसार, अत्थदस्सी थेर ने भेसज्जमञ्जूसा की रचना की है।
भेसज्जमञ्जूसा के रचना का आधार:
यह ग्रंथ बौद्धकालीन चिकित्सा पद्धति और भेसज्जक्खन्धक (औषधियों) के आधार पर रचा गया है। लेखक ने वाग्भट्ट के संस्कृत ग्रंथ अष्टांग हृदयम की भी सहायता ली है। ऐसा माना जाता है कि वाग्भट्ट पर बौद्ध धर्म का प्रभाव था।
भेसज्जमञ्जूसा की विषय-वस्तु:
मूल रूप में यह ग्रंथ 60 अध्यायों में विभाजित है। आरंभिक 18 अध्यायों में पारम्परिक चिकित्सा पद्धति का वर्णन किया गया है। जिसमें इन विषयों पर चर्चा की गई है- अच्छा रहन-सहन, रोग निवारण, तरल औषधियाँ, विषाक्त भोजन, विभिन्न प्रकार के अपच। शेष 42 अध्यायों में व्युत्पत्ति और चिकित्सा दी गई है।
भेसज्जमञ्जूसा में रोग को दो प्रकारों (द्विबाधा ) में विभाजित किया गया है- मानसिक और शारीरिक (मनोकाया)। प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों का उल्लेख महाकम्मपद्धति (प्रमुख चिकित्सा पद्धतियों का विवरण) और चुल्लकम्मपद्धति (लघु चिकित्सा पद्धतियों का विवरण) अध्यायों में किया गया है। इस ग्रंथ में हृदय रोग (हदयामयो), उल्टी (छद्दि), खांसी (कसनं), असामान्य प्यास (पिपासा), रक्ताल्पता पीलिया (पण्डुसंयुता), कृमि रोग आदि रोगों के बारे में जानकारी दी गई है।
इस ग्रंथ में स्वस्थ रहने के तरीके बताए गए हैं-
निच्चं हिताहारविहारसेवी।
समिक्खकारी विसयेस्वसत्तो ||
दाता समो सच्चपरो खमावा
गरूपसेवी च भवत्यरोगा ||
(जिसका खान-पान और आचरण अच्छा है, जो विवेकशील है, सांसारिक सुखों में आसक्त नहीं है, उदार, सत्यवादी, धैर्यवान और अच्छी संगति चाहता है, वह व्यक्ति रोग से मुक्त हो जाएगा।)
व्यायाम के महत्व को इस प्रकार समझाया गया है-
अग्गिनो दीपनं मेदक्खयो कम्म समत्थता |
लाघवं घनदेहत्तं वायामा उपजायते||
(शारीरिक व्यायाम से पाचन क्रिया तीव्र होती है , अतिरिक्त चर्बी का क्षय होता है , कठिन परिश्रम करने की क्षमता रहती है , शरीर में हल्कापन और काया स्थिर रहती है ।)
भेसज्जमञ्जूसा की रचना शैली :
भेसज्जमंजूसा ग्रन्थ पद्य शैली में लिखा गया है। जैसा कि पहले बताया गया है, इस ग्रन्थ में कुल 60 अध्याय हैं। विषय की पूर्ण व्याख्या के लिए लेखक ने कहीं-कहीं अध्यायों को वग्गों में विभाजित किया है। अन्नव्ययंजनपद्धति (अन्न और व्यंजन पद्धति ) इस अध्याय में 12 वग्ग हैं- धञ्ञवग्गो , कतन्नववग्गो, मंसवग्गो, मच्छववग्गो, साकवग्गो, पुप्फवग्गो, फलवग्गो, कन्दवग्गो, करीरवग्गो, खलवग्गो, लोणवग्गो और कटुकवग्गो। इसके अलावा 5 वग्ग – तोयवग्गो, खीरवग्गो, उच्छुवग्गो, मधुवग्गो और तेलववग्गो दवदब्बपद्धति (तरल औषधियों का प्रदर्शन) इस अध्याय में हैं।
भेसज्जमञ्जूसा का अनुवाद एवं संस्करण :
भेसज्जमञ्जूसा का सिंहली अनुवाद अठारहवीं शताब्दी में सरणंकर द्वारा किया गया था। इस ग्रंथ के अध्याय 1-18 का समालोचनात्मक संस्करण जिनदास लियानरत्ने द्वारा किया गया था, जिसे 1996 में पाली टेक्स्ट सोसायटी द्वारा प्रकाशित किया गया था। लियानरत्ने ने उन अठारह अध्यायों का एक विद्वत्तापूर्ण अनुवाद किया है, जिसका शीर्षक है ‘The Casket of Medicine’ , जिसे 2002 में पाली टेक्स्ट सोसायटी द्वारा प्रकाशित किया गया। डॉ. बिमलेंद्र कुमार द्वारा 2015 में नागरी लिपि में भेसज्जमञ्जूसा का संपादन किया गया है। उन्होंने इस ग्रंथ को अठारह अध्यायों में संपादित भी किया है।
अन्य देशों में भेसज्जमञ्जूसा का महत्व :
भेसज्जमञ्जूसा की प्रत पंद्रहवीं शताब्दी में सिंहल ने म्यांमार को दान स्वरूप दी थी । इस ग्रंथ की एक पांडुलिपि थाईलैंड में भी मिली है। आज भी, इन देशों में चिकित्सा विज्ञान में इस ग्रंथ का बहुत महत्व है।
पाली साहित्य में भेसज्जमञ्जूसा का महत्व:
भेसज्जमञ्जूसा पालि साहित्य का एकमात्र चिकित्सा ग्रंथ है, इसीलिए यह ग्रंथ बहुत महत्वपूर्ण है। इस ग्रंथ पर पालि साहित्य, विशेष रूप से भेसज्जक्खन्धक का प्रभाव दिखाई देता है। पालि साहित्य में चिकित्सा विज्ञान के बारे में प्रचुर सामग्री है, यह इस ग्रंथ के अध्ययन से पता चलता है। पालि साहित्य के चिकित्सा विज्ञान पर अभी तक पर्याप्त संशोधन नहीं हुआ है। यह ग्रंथ इस संदर्भ में पर्याप्त जानकारी प्रदान करता है।
आइए, रोगों का डटकर मुकाबला करते हुए, ‘स्वास्थ्य ही धन है’ की जानकारी देने वाली औषधि की पेटी भेसज्जमञ्जूसा का अध्ययन करें।
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