प्रस्तावना :

धम्मपद  मे कहाॅ गया है-‘आरोग्य परमा लाभा‘ अर्थात आरोग्य श्रेष्ठ लाभ है | मानवी जीवन सुखपूर्वक व्यतीत करने के लिये शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ की आवश्यकता होती है।मनुष्य सामाजिक जीव है। मनुष्य को कुशलक्षेम सामाजिक जीवन व्यतित करने के लिये समाज मे शांतिपूर्वक वातावरण होना चाहिए , समाज में अपराध ,गुन्हेगारी प्रवृत्ति का शमन होना चाहिए |

पालि साहित्य में विश्लेषित चिकित्सा विज्ञान न सिर्फ शारीरिक एवं मानसिक रोगो को नष्ट करने में सहाय्यक सिद्ध होते है , बल्कि सामाजिक रोगो को भी नष्ट करके रोगमुक्त स्वस्थ विश्व का निर्माण करने मे सहाय्यक सिद्ध होते है।

अहिंसावादी बुद्ध :

बुद्ध यहअहिंसावादी थे। बुद्ध कहते है –

न हि वेरेन वेरानि सम्मन्तीध कुदाचनं।
अवेरेन च सम्मन्ति एस धम्मो सनन्तनो।।

(अर्थात इस संसार में वैमनस्य से वैमनस्य कभी शांत नही होना है, अवमैनस्य (मैत्री) द्वारा वैमनस्य शान्त होता है’ यही शाश्वत नियम है)

बुद्ध, सामाजिकरोग चिकित्सक :

पालि साहित्य के अध्ययन द्वारा ज्ञात होता है कि भगवान बुद्ध ने कुख्यात डाकु अंगुलीमाल एवं अन्य कई चोर-डाकुओं का मनपरिवर्तन करके उन्हे हिंसा युक्त, अपराधयुक्त मार्ग से विमुख कराकर सन्मार्ग पर आरूढ किया है।यही कुख्यात डाकू अंगुलिमाल बुद्ध धम्म की शरण ग्रहण कर थेर अंगुलिमाल हुये | अपना पूर्व जीवन कथन करते हुए वे अंगुलिमाल थेरगाथा में कहते है –

दण्डे ने के दमयन्ति,अंकुसेमि कसाहि च |
अदण्डेन असत्थेन,अहं दंतोम्हि तादिना ||

(अर्थात कुछ प्राणियों का दण्ड,अंकुश से अथवा चाबुक से दमन किया जाता है | परन्तु मै दण्ड के बगैर, शस्त्र के बगैर अचल बुद्ध द्वारा दान्त -शान्त हूँ )

अपराधशास्त्र  :

विकिपीडिया के अनुसार –अपराधशास्त्र (Criminology) अपराध, अपराधीक स्वभाव तथा अपराधियों के सुधार का वैज्ञानिक ’अध्ययन करती है। अपराधशास्त्र में अपराध ,अपराध के उत्पत्ति कारण एवं अपराध की रोकथाम एवं अपराध के रोकथाम के उपायों का अध्ययन किया जाता है |

अपराधशास्त्र पर बौद्ध धम्म का प्रभाव :

बुद्ध अपराधी को शिक्षा देने के बजाय उसका मन परिवर्तन करके उसे सन्मार्ग पर लाने में ज्यादा विश्वास करते थे जो अंगुलीमाल जैसे कुख्यात डाकु का मनपरिवर्तन करके उसे सन्मार्ग पर लाने के उदाहरन द्वारा अधिक स्पष्ट होना है।  अपराधशास्त्र में भी अपराधी को ’शिक्षा’ देने के बजाय उसमें ’सुधार’ करने पर अधिक भर दिया जाता है।

आधुनिक मनोविज्ञान पर बौद्ध धम्म का प्रभाव :

धम्मपद  के यमकवग्ग  मे कहाॅ गया है-

अक्कोच्छि मं अवधि मं अजिनि मं अहासि मे |
ये च तं उपनय्हन्ति     वेरं    तेसं न सम्मति ||

(अर्थात उसने मुझे डाँटा, उसने मुझे मारा,उसने मुझे जीत लिया, उसने मुझे लूट लिया-जो मन मे ऐसी गाठें बांधते है, उनका वैर शांत नहीं होता है | )

और

अक्कोच्छि मं अवधि मं अजिनि मं अहासि मे |
ये तं न उपनय्हन्ति     वेरं    तेसूपसम्मति ||

(अर्थात उसने मुझे डाँटा, उसने मुझे मारा,उसने मुझे जीत लिया, उसने मुझे लूट लिया-जो मन मे ऐसी गाठें नहीं बांधते है,उनका वैर शांत हो जाता है )

अपराध के मूल कारणों के बारे में विचार करे तो  मनुष्य नकारात्मक चिंतन प्रवृत्तियों के कारण ही हिंसायुक्त अपराधिक कृत्य करता है।आधुनिक मनोविज्ञान भी अपराध को मनुष्य की नकारात्मक विचारो का ही परिणाम मानता है।

ध्यान का अपराधियों पर प्रभाव :

अपराधी या गुन्हेगार इर्षा, द्वेष, इ. मानसीक कुप्रवृत्तियों के कारण अपराधीक कृत्य करते है। ध्यान द्वारा मन को नियंत्रित किया जा सकता है। ध्यान मन की नकारात्मक प्रवृत्तियों को सकारात्मक प्रवृत्तियों मे परीवर्तन करने मे सहाय्यक सिद्ध होता है।विश्व भर में ध्यान का अपराधियों पर काफी सकारात्मक परिणाम आया हैं |

निश्चितही बुद्ध की शिक्षा आज भी समाज में हिंसा, अपराध कम करके शांती सद्भाव प्रस्थापित करने में सहायक सिद्ध हो रही है।

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