बुद्ध के शांतिदायक विचार :
इस लेख में बुद्ध के निम्न शांतिदायक विचारों का समावेश किया गया है |प्रस्तुत विचार धम्मपद ग्रन्थ से संकलित किये गये है |
१ अक्कोछि मं अवधि मं अजिनि मं अहासि मे |
ये तं न उपनय्हन्ति वेरं तेसूपसम्मति ||
(उन्होंने मुझे कोसा, उन्होंने मुझे मारा, उन्होंने मुझे हराया, उन्होंने मुझे लुटा जो मन में ऐसी गांठें नहीं बांधते है उनका वैर शांत होता है |)
२ न हि वेरेन वेरानि सम्मन्तीध कुदाचनं |
अवेरेन च सम्मन्ति एस धम्मो सनन्तनो ||
(इस संसार में वैर से वैर कभी शांत नहीं होता है, अवैर से ही वैर शांत होता है – यही शाश्वत नियम है |)
३ यथागारं सुच्छन्नं वुट्ठी न समतिविज्झति |
एवं सुभावितं चित्तं रागो न समति विज्झति ||
(जैसे अच्छी तरह छाये हुये घर में बारिश का पानी नहीं प्रवेश कर सकता, वैसे ही ध्यान भावना से अच्छी तरह अभ्यस्त चित्त में राग प्रवेश नहीं कर सकता |)
४ जयं वेरं पसवति दुक्खं सेति पराजितो |
उपसन्तो सुखं सेति हित्वा जयपराजयं ||
(विजय वैर उत्पन्न करती है, पराजित (मनुष्य )दुःख की नींद सोता है, ( पर राग और द्वेष जिसके ) शांत हो गये हैं, वह जय -पराजय छोड़कर सुख की नींद सोता है |)
५ अनवस्सुतचित्तस्स अनन्वाहतचेतसो |
पुञपापपहीणस्स नत्थि जागरतो भयं ||
(जिसके चित्त में राग नहीं है, जिसका चित्त द्वेषरहित है, जो पाप-पुण्य विहीन है,उस जागरूक पुरुष को भय नहीं है | )
६ यथापि रहदो गम्भीरो विप्पसन्नो अनाविलो |
एवं धम्मानि सुत्वान विप्पसीदन्ति पण्डिता ||
(धम्म का श्रवण कर के पंडित गंभीर,स्वच्छ एवं निर्मल जलाशय के समान अत्यंत प्रसन्न(संतुष्ट) होते है |)
७ सहस्समपि चे वाचा अनत्थपदसंहिता |
एकं अत्थपदं सेय्यो यं सुत्वा उपासम्मति ||
(निरर्थक पदों से युक्त हजार वचनों की अपेक्षा एक ही सार्थक पद श्रेष्ठ है,जिसे सुनकर (कोई व्यक्ति) शांत हो जाता हो |)
८ धम्मं चरे सुचरितं न तं दुच्चरितं चरे |
धम्मचारी सुखं सेति अस्मिं लोके परम्हि च ||
(सुचरित धम्म का आचरण करे, दुराचरण न करे | धम्मचारी इसलोक और परलोक दोनों जगह सुखपूर्वक रहता है | )
९ यो च पुब्बे पमज्जित्वा पच्छा सो नप्पमज्जति |
सो’ मं लोकं पभासेति अब्भा मुत्तो’ व चन्दिमा ||
(जो पहले प्रमाद करके बाद में प्रमाद नहीं करता है, वह इसलोक को मेघ से मुक्त चन्द्रमा की तरह प्रकाशित करता है |)
१० आरोग्यपरमा लाभा सन्तुट्ठी परमं धनं |
विस्सासपरमा ञाती निब्बानं परमं सुखं ||
(आरोग्य श्रेष्ठ लाभ है, संतुष्टि श्रेष्ठ धन है, विश्वास श्रेष्ठ बंधु है और निब्बाण श्रेष्ठ सुख है)
बुद्ध के शांतिदायक विचारों का महत्व :
बुद्ध ने विश्व को शांति का महत्वपूर्ण सन्देश दिया | मनुष्य यह सामाजिक प्राणी है| अच्छा सामाजिक जीवन व्यतीत करने के लिए समाज में शांतता ,अहिंसा प्रस्थापित होना अत्यावश्यक है |बुद्ध के शांतिदायक विचारों का अवलोकन करने से ज्ञात होता है की बुद्ध ने हिंसा का जवाब शांति ,प्रेम से देने का उपदेश दिया है | ऐसे उपदेशों के अनुसरण द्वारा समाज में शांति निश्चितही प्रस्थापित होती है | बुद्ध ने हिंसायुक्त मार्ग से मनुष्य को परावृत्त करके शांति के पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया है | आज भी विश्व को युद्ध की नहीं बुद्ध की जरुरत है |
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बुद्ध के शांतिदायक विचारों की आवश्यकता :
बुद्ध के विचार अतीत काल में मार्गदर्शक थे ,वर्तमान काल में भी मार्गदर्शक है और भविष्य काल में मार्गदर्शक सिद्ध होंगे | आज पुरे विश्व में कोरोना महामारी के वजह से निराशा के घने बादल छाये हुए है | विश्व में प्रत्येक जगह अशांति,अस्थिरता का माहौल बना है | सब कुछ परिवर्तनशील है,जो कुछ उत्पन्न हुआ है वह नष्ट होगा ही ,सब कुछ अनित्य है | ऐसे माहौल में बुद्ध के शांतिदायक विचारों का प्रचार-प्रसार होना अत्यावश्यक है |
बुद्ध के शांतिदायक विचार आज भी समाज,राष्ट्र और विश्व में शांति प्रस्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे है ……………