बौद्ध धम्म जीवन जीने का मार्ग :
बुद्ध ने विश्व को शांति का सन्देश प्रदान किया है | बौद्ध धम्म को ‘धर्म’ कह के सम्बोधित करना अर्थात उसे सिमित बाड़े में बांधना है | बौद्ध धम्म यह जीवन जीने का मार्ग है, जीवन जीने की कला है | बौद्ध धम्म समस्त मानवजाति के कल्याण के लिए है| बौद्ध धम्म मनुष्य को स्वयं प्रगति के राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है |
मनुष्य को प्रधानता :
बौद्ध धम्म में मनुष्य को प्रधानता दी गयी है | मनुष्य स्वयं अपने अच्छे और बुरे कर्मो के लिए जिम्मेदार है और कोई नहीं है |
दिसो दिसं यन्तं कयिरा वेरी व पन वेरिनं |
मिच्छापणिहितंचित्तं पापियों नं ततो करे ||
जितनी हानि शत्रु शत्रु की वा वैरी वैरी की करता है, उससे अधिक हानि कुमार्ग की ओर गया हुआ चित्त करता है |
बुद्ध केवल मार्गदर्शक, पथप्रदर्शक है, परन्तु चलना तो स्वयं मनुष्य को ही है | मनुष्य स्वयं अपना मालिक, स्वामी है और कोई नहीं है | दुसरो को जितना आसान है ,परन्तु स्वयं को जितना कठिन है |
यो सहस्सं सहस्सेन सङ्गामे मानुसे जिने |
एकंच जेय्यमत्तानं स वे सङ्गामजुत्तमो ||
इसीलिए जो युद्ध में लाखो मनुष्यों को जीतता है उससे भी श्रेष्ट संग्राम विजयी वह कहलाता है जो स्वयं को जीतता है |
बुद्ध के विचारों का महत्व :
व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन दुक्खों से मुक्ति पाने में और सुख की चाह में व्यतीत हो जाता है | व्यक्ति अपने दुखों के लिए दूसरे व्यक्ति , परिस्थिति को जिम्मेदार ठहराता है, परन्तु यह गलत है | व्यक्ति स्वयं अपने सुखों और दुक्खों का जिम्मेदार है |बुद्धवाणी , बुद्ध विचारों का अध्ययन करके और उसे जीवन में अवलम्ब करने के पश्चात व्यक्ति को इस सत्य का बोध होता है | मनुष्य को जीवन की इस सत्यता से अवगत कराने के लिए बुद्ध के विचारों का अत्याधिक महत्व है | मानवी जीवन को दुःख मुक्ति से सुख की ओर परिवर्तित करने के लिए बुद्ध के विचारों की आवश्यकता हर युग में है |
बुद्ध के प्रेरणादायक विचार :
इस लेख में बुद्ध के निम्न प्रेरणादायक विचारों का समावेश किया गया है |प्रस्तुत विचार धम्मपद ग्रन्थ से संकलित किये गये है |
- इस संसार में वैर से वैर कभी शांत नहीं होता है , अवैर से ही वैर शांत होता है – यही शाश्वत नियम है |
- माता-पिता, न दूसरे रिश्तेदार, उतना कुशल नहीं कर सकते है, जितना कुशल सन्मार्ग की ओर गया हुआ चित्त करता है |
- जिसप्रकार फूलों के ढेर से बहुत सारी मालायें बनाई जाती है , उसीप्रकार मनुष्यों को बहुत से कुशल कर्म करने चाहिये |
- चन्दन ,तगर, कमल या जूही, इन सभी की सुगंधियों से सदाचार की सुगंध श्रेष्ठ है |
- उस कार्य का करना अच्छा है, जिसे करने के पश्चात पछताना न पड़े और जिसका फल प्रसन्न मन से भोगना पड़े |
- बुरे मित्रों की संगति न करे और अधम पुरुषों की संगति न करे | अच्छे मित्रों की संगति करे और उत्तम पुरुषों की संगति करे |
- निरर्थक-पदों से युक्त हज़ार गाथाओं से एक ही गाथा श्रेष्ट है, जिसे सुनकर शान्ति प्राप्त हो |
- यदि पुण्य कर्म करे, तो उसे बार-बार करे | उसमें रत होवे | क्योंकि पुण्य का संचय सुखकारक होता है |
- मनुष्य अपना स्वामी स्वयं है, दूसरा कौन स्वामी हो सकता है ? स्वयं को दमन करने वाला मनुष्य दुर्लभ स्वामित्व को पाता है |
- क्रोध को अक्रोध से जीते, बुराई को भलाई से जीते, कंजूस को दान से और झूठ को सत्य से जीते |
बुद्ध के विचारों की आवश्यकता :
बुद्ध के दर्शन, विचार आज के परिप्रेक्ष्य में भी आवश्यक है | वर्त्तमान परिस्तिथि में कोरोना महामारी, बेरोजगारी के कारन विश्व में अशांति फैली हुयी है | आज के इस वातावरण में निराशा के घने बादल पुरे विश्व में छाये हुए है | ऐसे वातावरण में बुद्ध के विचाररूपी सूर्यकिरणों की सम्पूर्ण समाज, राष्ट्र और विश्व को अत्याधिक आवश्यकता है |
आइये, बुद्ध के प्रेरणादायक विचारों का अवलम्ब करते हुए कोरोना महामारी का दृढ़तापूर्वक सामना करे |