पालि साहित्य में जीवक का वर्णन :
जीवक प्राचीन भारत के प्रसिद्ध बौद्ध चिकित्सक थे। जीवक का जीवन वर्णन विनयपिटक के चीवरक्खन्धक में किया गया है । उनकी माता राजगृह की गणिका शालवती थी। जन्म के उपरान्त उनकी माता ने उनको कचरे के ढ़ेर में फिकवा दिया था।
‘हन्द, जे, इमं दारकं कत्तरसुप्पे पक्खिपित्वा नीहरित्वा सङ्कारकूटे छड्डेही’’ति।
परन्तु राजकुमार अभय ने उस नवजात शिशु को बचा लिया और उनका पालन-पोषण किया। वह शिशु उस कचरे के ढ़ेर में भी जीवित था इसलिए उसका नाम जीवक रखा गया।
कुमारेन पोसापितोति ‘कोमारभच्चो’ति नामं अकंसु।
कुमार के द्वारा उनका पालन पालन-पोषण किया किया गया इसलिए उन्हें कौमारभच्च भी कहा जाने लगा। ।
चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन :
जीवक ने अपना चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन तक्षशिला में पूर्ण किया। जीवक ने अपना अध्ययन सफलतापूर्वक पूर्ण किया। जीवक के ज्ञान की परीक्षा लेने के लिए उनके आचार्य ने जीवक से कहा की तक्षशिला के चारों ओर ऐसी वनस्पति ढूँढ लाओ जिसका किसी भी रोग के लिए इलाज न होता हो। जीवक ने अपने आचार्य की आज्ञा का पालन करते हुए अपने आचार्य को निम्न उत्तर दिया-
“अहिपण्डन्तोम्हि, आचारिय, तक्कसिलाय समन्ता योजनं, न किञ्चि अभेसज्जं अद्दस। “
“आचार्य मैंने तक्षशिला सभोवताल एक एक योजन पर्यन्त देखा, परन्तु मुझे कोई भी ऐसी वनस्पती नहीं दिखी जिसका किसी ना किसी रोग के लिए औषधी के तौर पर उपयोग न हो। ”
जीवक के जवाब से उसके आचार्य संतुष्ट हुए।
जीवक,प्रसिद्ध बौद्ध चिकित्सक :
विनयपिटक के चीवरक्खन्धक के विश्लेषण द्वारा हमें ज्ञान होता है की जीवक ने साकेत नगरी मे एक धनाढ्य श्रेष्ठी की पत्नी का दुर्धर सिर का रोग ठीक किया था।
अथ खो जीवको कोमारभच्चो सेट्ठिभरियाय सत्तवस्सिकं सीसाबाधं एकेनेव नत्थुकम्मेन अपकड्ढि।
उसीप्रकार जीवक ने राजगृह के एक श्रेष्ठी के सात साल से पीड़ित लाइलाज सिर के रोग का भी सफलतापूर्वक इलाज किया।
जीवक, कुशल शल्य चिकित्सक :
जीवक यह कुशल शल्य चिकित्सक भी था। जीवक ने शल्य चिकित्साद्वारा वाराणसी के श्रेष्ठी के पुत्र का पेट चीर कर आतें ठीक की और पुनः पेट सील दिया।
इसका वर्णन विनयपिटक के चीवरक्खन्धक में निम्न प्रकार से किया गया है –
“अन्तगण्ठिं विनिवेठेत्वा अन्तानि पतिपवेसेत्वा उदरछविं सिब्बित्वा आलेपं अदासि।”
भगन्दर रोग का इलाज :
मगध राज बिम्बिसार के भगन्दर रोग का इलाज भी जीवक ने किया था।
अथ खो जीवको कोमारभच्चो रञ्ञो मागधस्स सेनियस्स बिम्बिसारस्स भगन्दलाबाधं एकेनेव आलेपेन अपकड्ढि।
पीलिया रोग का इलाज :
उज्जयिनी के राजा प्रद्योत पीलिया रोग से पीड़ित थे।
तेन खो पन समयेन रञ्ञो पज्जोतस्स पण्डुरोगाबाधो होति।
जीवक ने उनके रोग का सफलतापूर्ण इलाज किया था।
गौतम बुद्ध का भी उपचार :
विनयपिटक केचीवरक्खन्धक के अध्ययन द्वारा ही यह महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है की जीवक ने गौतम बुद्ध का भी उपचार कर उन्हें व्याधिमुक्त किया था।
अथ खो भगवतो कायो नचिरस्सेव पकतत्तो अहोसि।
प्राचीन बौद्ध चिकित्सा पद्धति बहुत प्रगत थी, शल्य चिकित्सा भी प्रचलित थी।विनयपिटक के चीवरक्खन्धक में वर्णित जीवक के जीवन कथन द्वारा प्राचीन भारत के समृद्धशाली चिकित्सा विज्ञान के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।