प्रस्तावना :

बुद्धवचन अथवा  तिपिटक को संकलित कर उसे विकसित करने में विभिन्न समय में संपन्न हुयी संगीतियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है | संगीतियों के क्रमबद्ध श्रृंखलाओं ने तिपिटक को सुव्यवस्थित करने का कार्य किया है| बौद्ध धम्म के इतिहास में बौद्ध संगीतियों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है | बौद्ध धम्म का इतिहास संगीतियों के इतिहास बगैर  के पूर्ण नहीं होता है | बौद्ध संगीतियों का प्रारम्भ प्रथम बौद्ध संगीति द्वारा हुआ है |

भगवान बुद्ध ने अंतिम समय में कहा था की मेरे पश्चात धम्म एवं विनय ही तुम्हारा शास्ता होगा | धम्म एवं विनय का संगायन प्रथम बौद्ध संगीति में किया गया |

कारन :

भगवान बुद्ध के महापरिनिब्बान के समय में कुछ भिक्खु शोक, विलाप कर रहे थे | उन्हें दुक्खी  देख सुभद्र भिक्खु कहने लगा -‘अच्छा हुआ,महाश्रमण अब नहीं रहे ,अब हमारी जो इच्छा होंगी वैसा ही करेंगे|’  उर्वरित  संघ के लिए  यह खतरे की सूचना थी | संघ को अनुशासित रखने के लिए एवं बुद्धवचन को संकलित करने के लिए प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया | विनयपिटक  के चुल्लवग्गमें प्रथम बौद्ध संगीति के आयोजन के पीछे सुभद्र के दुर्भाषित वचन का उल्लेख किया गया है | परन्तु दीपवंस  ग्रन्थ में सुभद्र के प्रक्ररण का उल्लेख नहीं किया गया है, मात्र दीपवंस  के पश्चात लिखित महावंस  ग्रन्थ में सुभद्र के प्रकरण का उल्लेख किया गया है |

काल :

प्रथम बौद्ध संगीति बुद्ध महापरिनिब्बान के चौथे मास में प्रारम्भित हुयी ऐसा माना जाता है | प्रथम बौद्ध संगीति के काल के विषय में पालि साहित्य में विस्तारपूर्वक जानकारी प्राप्त होती है | महावंस  ग्रन्थ के  अनुसार बुद्ध के महापरिनिब्बान के एक सप्ताह बाद, सुभद्र प्रकरण के पश्चात प्रथम बौद्ध संगीति सम्बन्धी कार्यवाही का प्रारम्भ हो गया था | अगर बुद्ध का महापरिनिब्बान वैशाख पूर्णिमा को माना जाये तो प्रथम बौद्ध संगीति श्रावण मास को प्रारम्भित हुयी | आचार्य बुद्धघोष इसी मत को स्वीकृत करते है |

आधुनिक पालि विद्वान भिक्खु धम्मरक्खित इन्होने ‘ पालि साहित्य का इतिहास ‘ इस पुस्तक में प्रथम बौद्ध संगीति के सन्दर्भ में निम्न वक्तव्य किया है –

‘यह संगायन भगवान के महापरिनिब्बान के चौथे मास में श्रावण की प्रतिपदा को प्रारम्भित हुआ था |’

महावंस  ग्रन्थ का प्रथम बौद्ध संगीति के काल के सम्बन्ध में कहना है की यह संगीति आषाढ़ मास में प्रारम्भित हुयी थी | साथ ही इस ग्रन्थ का ऐसा भी कहना है की प्रथम मास तैयारी में ही व्यतीत हुआ |

अध्यक्ष :

प्रथम बौद्ध संगीति के अध्यक्ष महाकाश्यप स्थविर थे | इस विधान की पुष्टि विनयपिटक  के चुल्लवग्ग,दीपवंस, समन्तपासादिका, महावंस, सासनवंस,सद्धम्मसंगह, बोधिवंस इ. ग्रंथों द्वारा होती है |  प्रथम बौद्ध संगीति के अध्यक्ष के विषय में पालि साहित्य में कोई भी मतभिन्नताएँ नहीं दिखाई देती है |

सहभागी भिक्खु :

प्रथम बौद्ध संगीति में प्रारम्भ में ४९९ अर्हन्त भिक्खु सम्मिलित थे एवं एक स्थान स्थविर आनंद के सुरक्षित रखा था | स्थविर आनंद इन्होने प्रयन्त पूर्वक अर्हन्त पद प्राप्त किया | इसतरह प्रथम बौद्ध संगीति में ५०० अर्हन्त भिक्खु सहभागी हुए थे |

प्रथम बौद्ध संगीति में सहभागी सभी भिक्खु अन्य भिक्खुओं की अपेक्षा श्रेष्ट थे | दीपवंस  ग्रन्थ में इस संगीति में सहभागी भिक्खुओं के गुणवर्णन के बारे में कहा है –

एतस्मिं संङ्रहे भिक्खू अग्गिनिक्खित्तका बहू |

सब्बे पि पारमिपन्ना लोकनाथस्स सासने     ||

(इस धम्मसंग्रह में सम्मिलित सभी भिक्खु अन्य भिक्खुओं की अपेक्षा श्रेष्ट थे | वे सभी बुद्ध के शासन में छः पारमिताओं से संपन्न थे)

दीपवंस  ग्रन्थ में सम्मिलित सभी भिक्खुओं के गुणवर्णन के साथ उनके विशेषताओं के विषय में भी चर्चा की गयी है -वहा उपस्थित भिक्खुओं में महाकाश्यप स्थविर धुतांगव्रतधारी भिक्खुओं में सर्वश्रेष्ठ थे | स्थविर आनंद धम्म के श्रोताओ में सर्वश्रेष्ठथे तथा स्थविर उपलि विनय के पण्डितों में श्रेष्ट थे |

दीपवंस  ग्रन्थ में प्रथम संगीति में सम्मिलित भिक्खुओ के विषय में काफी विस्तृत जानकारी दी गयी है |

५ स्थान :

प्रथम बौद्ध संगीति राजगृह में संपन्न हुयी | दीपवंस  ग्रन्थ में प्रथम बौद्ध संगीति का स्थान ‘सत्तपण्णिगुहाद्वारे ‘अर्थात राजगृह के सप्तपर्णी गुफा द्वार सूचित किया गया है | महावंस  में इसी जानकारी का विस्तार करते हुए कहा है -‘वैभार पर्वत की तलहटी में सप्तपर्णी गुफा के द्वार पर मण्डप बनवाया गया | ‘

कालावधि :

प्रथम वंस ग्रन्थ दीपवंस  द्वारा   प्रथम बौद्ध संगीति के कालावधि के विषय में कोई जानकारीउपलब्ध नहीं होती है | परन्तु महावंस ग्रन्थ में इस सन्दर्भ  में जानकारी प्राप्त होती है -‘सर्व लोक हितेषी स्थविरों ने इस प्रकार सात मास में सारे संसार के कल्याण के लिए धम्मसंगीति समाप्त की | ‘अर्थात महावंस  ग्रन्थ के अनुसार प्रथम बौद्ध संगीति की कार्यवाही सात महीनो तक चली |

आधुनिक पालि विद्वानों ने भी प्रथम बौद्ध संगीति के कालावधि के विषय में वक्तव्य किया है | भिक्खु धम्मरक्खित ने ‘पालि साहित्य के इतिहास ‘ इस पुस्तक में उल्लेख किया है की यह संगीति सात महीनों तक चली |

७  राजाश्रय :

विनयपिटक  के चुल्लवग्ग  में उल्लेख है की प्रथम बौद्ध संगीति के सन्दर्भ में उचित व्यवस्था राजा अजातशत्रु ने की थी | दीपवंस  ग्रन्थ में प्रथम बौद्ध संगीति के सन्दर्भ में राजा अजातशत्रु का उल्लेख नहीं किया गया है | परन्तु महावंस  ग्रन्थ में राजा अजातशत्रु का सन्दर्भ दिया गया है |

८  प्रमुख कार्यवाही :

दीपवंस  में प्रथम बौद्ध संगीति के बारे में निम्न जानकारी दी गयी है –

‘अंकसु धम्मसङ्रह विनयं चापि भिक्खवो’

(प्रथम बौद्ध संगीति में धम्म और विनय का विस्तारपूर्वक संग्रह किया गया |)

प्रथम बौद्ध संगीति के कार्यवाही के विषय में पालि साहित्य में मतभिन्नताएँ दिखाई देती है | समन्तपासादिका  ग्रन्थ में उल्लेख है की विनय और धम्म के साथ ही अभिधम्मपिटक  का भी पारायण इस संगीति में किया गया | प्रस्तुत विधान का खंडन भदन्त आनंद कौसल्यायन इन्होने महावंस  ग्रन्थ की प्रस्तावना में किया है |

सर्वास्तिवादी विनयपिटक  में इस संगीति की कार्यवाही निम्न प्रकार से वर्णित की गयी है –

          १ धम्मआनंद द्वारा

          २ विनयउपालि द्वारा

          ३ अभिधर्ममहाकाश्यप द्वारा

इसप्रकार तिपिक की रचना हुयी | उपरोक्त विधान भी युक्तिसंगत नहीं लगता है |

९  विविध ग्रंथों में उल्लेख :

प्रथम बौद्ध संगीति का उल्लेख  विनयपिटक  के चुल्लवग्ग, दीपवंस, महावंस, सासनवंस, बोधिवंस,सधम्मसंगह,समन्तपासादिका  इ. पालि ग्रंथों में किया गया है |

सिंहली भाषा में लिखित निकायसंग्रह  में भी प्रथम बौद्ध संगीति का वर्णन किया गया है |

महावस्तु  में भी प्रथम बौद्ध संगीति का वर्णन किया गया है | उसीप्रकार सर्वास्तिवादी विनयपिटक  में भी इस संगीति का वर्णन किया गया है |

चीनी यात्री फाहियान तथा व्हेन -त्सांग ने भीअपने यात्रा वर्णन में प्रथम बौद्ध संगीति का वर्णन किया है |

१० महत्व :

तिपिटक साहित्य की निर्मिति एवं विकास का अध्ययन करते समय प्रथम बौद्ध संगीति अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य करती है | प्रथम बौद्ध संगीति में धम्म एवं विनय का संकलन कर उसे नवांग बुद्धशासन में विभाजित किया गया| इस प्रकार आगमपिटक की निर्मिति हुयी |  आगमपिटक का क्रमशः विकास होकर तिपिटक साहित्य विकसित हुआ | तिपिटक साहित्य के विकास की प्रक्रिया ज्ञात होने के लिए प्रथम बौद्ध संगीति अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध होती है |

बुद्धवचन को संकलित करने में बौद्ध संगीतियों की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही है | उसीप्रकार बुद्धवचन को सुरक्षित करने में भी बौद्ध संगीतियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है | निश्चितही प्रथम संगीति ने संगीतियों के श्रृंखलाओं में महत्वपूर्ण कार्य किया है |

 

 

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