पालि साहित्य ज्ञान का विशाल और अथांग महासागर है | पालि साहित्य में प्राचीन औषधियों एवं प्राचीन चिकित्सा पद्धति के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होती है | पालि साहित्य प्राचीन औषधियों एवं प्राचीन चिकित्सा पद्धति के समृद्धशाली इतिहास से संपन्न है |
बुद्ध ‘भेसज्जगुरु’:
गौतम बुद्ध महान वैज्ञानिक थे | बौद्ध धम्म यह जीवन जीने का मार्ग है, जीवन जीने की कला है | बौद्ध धम्म यह मनुष्यों को दुक्खों से मुक्त कराकर सुख की ओर अग्रेसर करनेवाला मार्ग है | बुद्ध ने ‘धम्म’ रूपी औषध देकर ‘दुक्ख’ रुपी व्याधि से ग्रस्त मनुष्यों को मुक्त होने का उपदेश दिया है , इसलिए बुद्ध को भेसज्जगुरु कहा जाता है |
पालि साहित्य में शरीरविज्ञान का विश्लेषण :
महासतिपट्ठानसुत्तं में शरीरविज्ञान का निम्न विश्लेषण किया गया है-
मानवी शरीर चार महाभूत से मिलकर बना है –
‘अत्थि इमस्मिं काये पथविधातु आपोधातु तेजोधातु वायोधातु ‘ति |
इस काया में पृथ्वी धातु, जल धातु, अग्नि धातु, और वायु धातु है |
अत्थि इमस्मिं काये –
केसा लोमा नखा दन्ता तचो,मंसं न्हारु अट्ठि अट्ठिमिञ्जं वक्कं , हदयं यकनं किलोमकं पिहकं पप्फासं,अन्तं अन्तगुणं उदरियं करीसं मत्थलुड्रं, पित्तं सेम्हं पुब्बो लोहितं सेदो मेदो, अस्सु वसा खेळो सिङ्घाणिका लसिका मुत्तन्ति |
इस काया में है –
केश, लोम, नख, दाँत, त्वचा, माँस, स्नायु , हड्डी, हड्डी के भीतर की मज्जा, गुर्दे, ह्रदय, यकृत, क्लोमक, तिल्ली, फुफ्फुस, आँत, पतली आँत, उदर, मल, मस्तक की गुदा, पित्त, कफ, पीब, लहु, पसीना, मेद, आँसू, वसा, लार, नाक का मल, लसिका(केहुनी आदि जोड़ों में स्थित तरल पदार्थ ) और मूत्र |
इसके अलावा महाराहुलवाद सुत्तं , खुद्दकपाठ, गिरिमानन्दसुत्तं एवं अन्य पालि ग्रंथो के अध्ययन द्वारा शरीरविज्ञान के बारे में जानकारी प्राप्त होती है |
शारारिक रोगों के बारे में जानकारी :
धम्मचक्कप्पवत्तनसुत्तं में दुक्खं अरियसच्चं में ‘व्याधिपी दुक्खो ‘ अर्थात व्याधि भी दुक्ख है ऐसा कहा गया है |
गिरिमानन्दसुत्तं में शरीर के विभिन्न अवयवों में उत्पन्न होने वाले रोग जैसे कान-रोग, मुख- रोग, दांत- रोग, पेट के रोग, इ. रोगों के विषय में ज्ञात होता है | दाद, खुजली, कोढ़, हैजा, मधुमेह, मूर्छा इ रोगों के बारे में जानकारी गिरिमानन्दसुत्तं में दी गयी है | ऋतु के अनुसार उत्पन्न होने वाले रोग, विषम दिनचर्या से उत्पन्न वाले रोग ऐसे कितने ही रोगों के विषय में जानकारी गिरिमानन्दसुत्तं के अध्ययन द्वारा प्राप्त होती है |
इसके अलावा मिलिन्दपन्हो, अभिधानप्पदीपिका, भेसज्जमञ्जूसा एवं अन्य पालि ग्रंथो के अध्ययन द्वारा शारीरिक रोगों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है |
रोगों के उपचार के बारे में जानकारी :
गौतम बुद्ध चिकित्सा शास्त्र के तज्ञ थे |विनयपिटक के भेसज्जक्खन्धकं द्वारा विभिन्न रोगों के उपचार के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है, जैसे सर्पविष चिकित्सा, विष चिकित्सा, पांडुरोग चिकित्सा, वातरोग चिकित्सा, जुलपित्ती चिकित्सा, चर्मरोग चिकित्सा इ. |भगवान बुद्ध को शल्यचिकित्सा के विषय में भी जानकारी प्राप्त थी |
इसके अलावा भेसज्जमञ्जूसा एवं अन्य पालि ग्रंथों के अध्ययन द्वारा रोगों के उपचार के बारे में जानकारी प्राप्त होती है |
औषधियों के बारे में जानकारी :
भेसज्जक्खन्धकं द्वारा औषधियों के बारे जानकारी प्राप्त होती है|, जैसे- हल्दी, अदरक , हींग, आँवला, नीम के पत्ते, तुलसी के पत्ते कपास के पत्ते, इ. का औषधि के तौर पर उपयोग होता था | सामुद्रिक नमक, काला नमक, सेंधा नमक इ. का लवणयुक्त औषधि के तौर पर उपयोग होता था | इससे अधिक प्राचीन औषधियों की जानकारी भेसज्जक्खन्धकं एवं अन्य पालि साहित्य के अध्ययन द्वारा प्राप्त होती है | यह सभी प्राकृतिक औषधियाँ है | प्राचीन बौद्ध चिकित्सा पद्धति में प्राकृतिक औषधियों का उपयोग होता था | बौद्ध चिकित्सा पद्धति प्रकृति के करीब है |
इसके अलावा भेसज्जमञ्जूसा एवं अन्य पालि ग्रंथों के अध्ययन औषधियों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है |
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार भारतीय ग्रामीणभाग के ६५% लोक आज भी स्वास्थ के लिये औषधि वनस्पति का ही उपयोग अधिक करते है |
‘आरोग्यपरमा लाभा ‘अर्थात आरोग्य श्रेष्ठ लाभ है | आइये, पालि साहित्य के समृद्धशाली चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन करते हुए स्वयं के और समाज के स्वास्थ का भी ध्यान रखते है…….
Thanks
Very good information about human body ,mind , medicine and आहार विहार