पालि साहित्य संशोधन के प्रत्येक आयाम से संपन्न है | पालि साहित्य में शारीरिकरोग चिकित्सा एवं मनोरोग चिकित्सा के विषय में भी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है |
पालि साहित्य में मनोविज्ञान का विश्लेषण :
मनोविज्ञान में मनुष्यों के मानसिक प्रक्रियाओं का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है |
बुद्ध कुशल मनोवैज्ञानिक थे | अभिधम्मपिटक को बौद्धों का मनोविज्ञान कहा जाता है | अभिधम्मपिटक में चित्त के कार्य-कलापों का, व्यवहार का सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है |
फन्दनं चपलं चित्तं,
दुरक्खं दुन्निवारयं|
(चित्त चंचल,चपल है और उसका निग्रह करना कठिन है | )
निश्चितही पालि साहित्य में मनुष्य के व्यवहार, मानसिक प्रक्रियाओं का सूक्ष्म एवं क्रमिक अध्ययन स्पष्ट किया गया है |
बुद्ध ‘मनोरोगचिकित्सक’:
भेसज्जमञ्जुसा यह पालि भाषा में लिखित चिकित्सा ग्रन्थ है | ‘भेसज्ज‘’ का अर्थ होता है ‘औषध’ एवं ‘मञ्जुसा‘’ का अर्थ होता है ‘पेटी’| अर्थात भेसज्जमञ्जुसा का शाब्दिक अर्थ ‘औषधियों की पेटी ‘होता है | भेसज्जमञ्जुसा में बुद्ध को मनोरोगतिकिच्छक अर्थात मनोरोगचिकित्सक कहा गया है |
मनोविकार :
बुद्ध कुशल मनोचिकित्सक थे |बुद्ध ने प्रथम उपदेश धम्मचक्कपवत्तनसुत्तं में चार आर्य सत्य में दुक्ख को परिभाषित करते हुए कहा है –
अप्पियेहि सम्पयोगो दुक्खो (अप्रियों का मिलना दुक्ख है)
पियेही विप्पयोगो दुक्खो (प्रियों का वियोग दुक्ख है)
यम्पिच्छं न लभति तम्पि दुक्खं (जो इच्छा है वही न मिलना भी दुक्ख है)
अवसाद के कारणों विश्लेषण करते हुए हमें यह कारण प्राप्त होते है | विकिपीडिया ने अवसाद का विश्लेषण करते हुए कहा है की –‘अवसाद या डिप्रेशन का तात्पर्य मनोविज्ञान के क्षेत्र में मनोभावों सम्बन्धी दुःख होता है |’| विकिपीडिया के अनुसार विश्व में ३२ करोड़ लोग अवसाद से ग्रस्त है ,जिनमे से ७ करोड़ भारतीय है | अवसाद स्रियों में अधिक पाया जाता है क्योंकि स्त्रियां अधिक भावनिक होती है |
दुर्भीति या फोबिया यह मनोविकार भय और डर के साथ जुड़ा है | पियवग्ग में भय के कारणों की चर्चा की गयी है | अर्थात पालि साहित्य के विश्लेषण द्वारा मनोरोगों के कारणों के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है |
मनोविकार उत्पन्न होन के कारन :
मनोविकार मन के नकारात्मक विचार प्रवृत्ति के कारन उत्पन्न होते है |
मनो पुब्बङ्रमा धम्मा मनो सेट्ठा मनोमया |
मनसा चे पदुट्ठेन भासति वा करोति वा
ततो नं दुक्खमन्वेति चक्कं ‘ व वहतो पदं ||
(मन सभी प्रवृत्तियों को अग्रणी है, मन उनका प्रधान है, वह मन से ही उत्पन्न होती है | अगर कोई दुषित मन से बोलता या कार्य करता है, तो दुक्ख उसका वैसा ही अनुसरण करता है जैसे बैलों के पीछे पीछे बैलगाड़ी के चक्के| )
अर्थात व्यक्ति नकारात्मक विचारशैली के कारन दुक्ख प्राप्त करता है |
वत्थसुत्तं में चित्त के सोला उपक्लेश अर्थात मल का वर्णन किया गया है , जैसे-
१ अभिध्या
२ व्यापाद
३ क्रोध
४ वैरभाव
५ म्रक्ष
६ निष्ठुरता
७ ईर्ष्या
८ मात्सर्य
९ माया
१० शठता
११ जड़ता
१२ उत्तेजना
१३ मान
१४ अतिमान
१५ मद
१६ प्रमाद
वत्थसुत्तं के विश्लेषण द्वारा मनोविकार के उत्पत्ति के मूल कारणों के बारे में जाना जा सकता है |
ध्यान का प्रभाव :
नकारात्मक विचार करने के प्रवृत्ति के कारन मनोविकार उत्पन्न होते है इसीलिये
चित्तवग्ग में कहा गया है –
चित्तस्स दमथो साधु
चित्तं दन्त सुखावहं |
(चित्त का दमन करना उत्तम है, दमन किया चित्त सुखदायक होता है |)
चित्तं रक्खेय्य मेधावी
चित्तं गुत्तं सुखावहं |
(बुद्धिमान व्यक्ति चित्त का रक्षण करे | सुरक्षित चित्त सुखदायक होता है |
अर्थात चित्त को नियंत्रित करना चाहिये | चित्त को ध्यान द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है |
अप्पमादवग्ग में कहा गया है –
अप्पमत्तो हि झायन्तो
पप्पोति विपुलं सुखं |
(अप्रमादी व्यक्ति ध्यान द्वारा विपुल सुख प्राप्त करता है |)
ध्यान के विषय में विस्तृत जानकारी महासतिपट्ठानसुत्तं एवं अन्य पालि सुत्तों द्वारा प्राप्त होती है |
मनोरोग चिकित्सा में ध्यान :
ध्यान का मनोविकारों पर काफी सकारात्मक परिणाम आया है | अवसाद(डिप्रेशन), चिंता (एंग्जायटी ) और अन्य मानसिक विकारों पर ध्यान का काफी अच्छा परिणाम हुआ है | आधुनिक मनोचिकित्सक भी मानसिक विकारों पर बौद्ध ध्यान से अधिक प्रभावित है |
पालि साहित्य में प्राचीन चिकित्सा पद्धति के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होती है जो आज भी महत्वपूर्ण सिद्ध होती है | आज भी आधुनिक चिकित्सा पद्धति में बौद्ध चिकित्सा पद्धति का उपयोग किया जाता है |