प्रस्तावना :
प्रथम बौद्ध संगीति में धम्म और विनय का संगायन किया गया | पालि साहित्य का प्राथमिक स्वरूप प्रथम बौद्ध संगीति में निश्चित किया गया | यथासमय में संपन्न हुयी संगीतियों ने पालि साहित्य को विकसित करने में महत्वपूर्ण कार्य किया है |
इस सन्दर्भ में द्वितीय संगीति ने भी महत्वपूर्ण कार्य किया है | थेरवाद यही मूल बौद्ध संप्रदाय है एवं थेरवादी बौद्ध साहित्य यही मूल बौद्ध साहित्य है, यह द्वितीय बौद्ध संगीति के अध्ययन से स्पष्ट होता है |
१ कारन :
भगवान बुद्ध के महापरिनिब्बान के सौ वर्षों पर्यन्त संघ में किसी भी प्रकार का विवाद नहीं था | परन्तु बुद्ध के महापरिनिब्बान के सौ वर्षों के उपरांत वज्जि के भिक्खुओं ने विनय के नियमों का उल्लंघन करना प्रारम्भित कर दिया और वे स्वार्थान्ध होकर उपासकों को धम्म के विरुद्ध आचरण करने के लिए प्रेरीत करते थे | वे दस विनय विरुद्ध बातों का आचरण करने लगे | इस विषय में दीपवंस ग्रन्थ में निम्न जानकारी दी है –
सिंङ्गिलोणं द्वङुलकप्प गामान्तरावासनुमतिं |
तथा आचिण्णामथितजलोगि वा पि रुपियं ||
निसिदनं अदसकं दीपिंसु बुद्धसासने |
उद्धम्मं उब्बिनयं च अपगतं सत्थुसासने ||
अर्थात
१ सींग में लवण(नमक )रख कर ले जाना |
२ मध्यान्होत्तर के बाद भी भोजन कर लेना |
३ मध्यान्ह के बाद भी ग्राम में जाना और फिर से भोजन कर लेना |
४ एक ही सीमा में रहनेवाले भिक्खुओ ने अपने अपने निवास में अलग अलग उपोसथागार बनवाना |
५ बाद में आने वाले भिक्खुओं की स्वीकृति के बगैर अल्पमत भिक्खुद्वारा पहले ही उपोसथ कर लेना |
६ विनय की अपेक्षा गुरु के वचन को अधिक प्रमाण मानना |
७ भोजनकाल के बाद भी दूध और दही की बीच की अवस्था वाले दूध का सेवनकरना |
८ मद्यभाव को अप्राप्त बिना खिंची सुरा का सेवन करना |
९ बिना किनारी के आसन का प्रयोग |
१० सोने,चांदी का स्वीकार करना |
इन विनयविरुद्ध बातों का निराकरण करने के लिए काकण्डपुत्र यश नामक स्थविर ने सभी प्रधान भिक्खुओं को निमंत्रित किया एवं द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया |
२ काल :
द्वितीय बौद्ध संगीति बुद्ध के महापरिनिब्बान के १०० वर्षों पश्चात (इसा पूर्व ४४३) में संपन्न हुयी | चुल्लवग्ग,दीपवंस, महावंस, सासनवंस, महाबोधिवंस, समन्तपासादिका इ. ग्रंथों में इसी काल का उल्लेख किया गया है | द्वितीय बौद्ध संगीति के काल के विषय में मतभिन्नताएँ दिखाई देती है | चीनी यात्रा वर्णनों के अनुसार द्वितीय बौद्ध संगीति भगवान बुद्ध के महापरिनिब्बान के ११० वर्षों पश्चात संपन्न हुयी |
३ अध्यक्ष :
द्वितीय बौद्ध संगीति के अध्यक्ष स्थविर रेवत थे | इस संगीति में विनय विरुद्ध बातों के निराकरण करने के लिए –
‘एकस्मिं सन्निपातस्मिं पामोक्खा अट्ठ भिक्खवो’(आठ भिक्खु प्रमुख़ एकत्रित हुए ) एवं
१ स्थविर सब्बकामी
२ स्थविर साळ्ह
३ स्थविर रेवत
४ स्थविर खुज्ज्सोभित
५ स्थविर वासभगामी
६ स्थविर सुमन
७ स्थविर साणवासी सम्भूत
८ स्थविर यश काकण्डपुत्त
इन भिक्खुमण्डलीयों ने कार्य किया |
४ सहभागी भिक्खु :
द्वितीय बौद्ध संगीति में ७०० भिक्खु सम्मिलित हुए थे | इसलिए द्वितीय बौद्ध संगीति को सप्तशतीका भी कहा जाता है | विनयपिटक के चुल्लवग्ग में द्वितीय बौद्ध संगीति का उल्लेख ‘सत्तसतिकक्खन्धकं’ कहकर ही किया गया है |
५ स्थान :
द्वितीय बौद्ध संगीति वैशाली के वालुकाराम में संपन्न हुयी | परन्तु दीपवंस में –
‘कूटागारसालाये च वेसालियं पुरुत्तमे’ अर्थात वैशाली के कुटागारशाला में द्वितीय बौद्ध संगीति संपन्न हुयी ऐसा वर्णन किया गया है | मात्र आधुनिक पालि विद्वान भिक्खु धम्मरक्खित इन्होने ‘पालि साहित्य का इतिहास’ इस पुस्तक में द्वितीय संगीति का स्थान वैशाली का वालुकाराम ही उल्लेखित किया है |
६ कालावधि :
‘अट्ठमासेहि निट्ठासि दुतियो संडूहो अयं’ अर्थात इस संगीति की कार्यवाही आठ मास में संपन्न हुयी | द्वितीय बौद्ध संगीति के कालावधि के बारे में ज्यादा मतभिन्नताएँ दिखाई नहीं देती है |
७ राजाश्रय :
द्वितीय बौद्ध को राजा कालाशोक ने राजाश्रय प्रदान किया था | पहले राजा कालाशोक वज्जि भिक्खुओं का समर्थन करते थे, परन्तु सत्य का बोध होने पर वे स्थविर यश के पक्ष में हुए |
८ प्रमुख कार्यवाही :
दीपवंस ग्रन्थ में द्वितीय बौद्ध संगीति के कार्यवाही के सम्बन्ध में निम्न वक्त्यव्य किया गया है –
दस वत्थुनि भिन्दित्वा पापे निद्धमयिंसु ते |
निद्धमेत्वा पापभिक्खू मद्दित्वा वादपापके ||
अर्थात पापी भिक्खुद्वारा समर्थित, पूर्वोक्त दस बातों का निराकरण करके उसी तरह पापी भिक्खुओं का भी दमन करके, संघ से पापाचरण को पूर्णता समाप्त किया गया | संघ को विशुद्ध करने का महत्वपूर्ण कार्य द्वितीय बौद्ध संगीति में किया गया |
उसीप्रकार द्वितीय बौद्ध संगीति में पालि साहित्य का विकास भी हुआ | भिक्खु धम्मरक्खित इन्होने ‘पालि साहित्य का इतिहास’ पुस्तक में कहा है की ‘कुछ सूत्र और गाथाएँ इस संगीति में भी त्रिपिटक में जोड़ी गयी| बक्कुल-सुत्त आदि इसके दृष्टांत है |
९ विविध ग्रंथो में उल्लेख :
द्वितीय बौद्ध संगीति का उल्लेख विनयपिटक के चुल्लवग्ग, दीपवंस, महावंस, सासनवंस, महाबोधिवंस, सद्धम्मसंगह, समन्तपासादिका इ. ग्रंथो में किया गया है |
चीनी यात्रियों के यात्रा वृत्तांतों भी द्वितीय बोद्ध संगीति का वर्णन किया गया है |
१० महत्व :
द्वितीय बौद्ध संगीति संघभेद के लिए कारणीभूत सिद्ध हुयी बौद्ध धम्म में जो विभिन्न संप्रदायवाद दिखाई देते है उसका बीज इसी संगीति में रोपा गया | बौद्ध धम्म में विभिन्न बौद्ध सम्प्रदाय एवं उनके विभिन्न साहित्य दिखाई देते है | इसके कारणों की मीमाँसा के लिए द्वितीय बौद्ध संगीति का अध्ययन महत्वपूर्ण सिद्ध होता है |द्वितीय संगीति में असंतुष्ट भिक्खुओं ने अपनी अलग संगीति संपन्न की, एवं अपना अलग बौद्ध संप्रदाय निर्माण किया, जिसे महासांघिक संप्रदाय कहा गया | दीपवंस में इस सन्दर्भ में कहा गया है –
महासंङ्गीतिका भिक्खू विलोमं अकंसु सासनं |
भिन्दित्वा मूलसङ्गहं अञ्ञं अकंसु सङ्गहं ||
महासंगीति के भिक्खुओं ने थेरवादी शासन को विलोम कर दिया और थेरवादियों द्वारा किये गए मूल संग्रह को विलोम करके अपना अन्य धम्मसंग्रह निश्चित किया |
साथ महासंघिक संप्रदाय ने मूल बौद्ध साहित्य में परिवर्तन करके अपना विभिन्न बौद्ध साहित्य इसी संगीति में निर्माण किया | दीपवंस के चतुर्थ पाठ में ‘ आचार्यवंश भेद ‘ में इस विषय में विस्तृत जानकारी दी गयी है |
निश्चितही विभिन्न बौद्ध सम्प्रदाय एवं उनके विभिन्न साहित्य का इतिहास स्पष्ट करने के लिए द्वितीय बौद्ध संगीति अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान देती है |