प्रस्तावना
पालि भाषा और साहित्य दोनों ही दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं ।आधुनिक भाषाओं पर भी पालि का स्पष्ट प्रभाव है । विश्व के ब्रृहद साहित्य भंडार में पालि साहित्य का समावेश होता है । पालि साहित्य तिपिटक साहित्य, अट्ठकथा साहित्य, व्याकरण साहित्य, कोश साहित्य,टीका साहित्य, अनुटीका साहित्य इ. साहित्य प्रकारों में विभाजित है ।इसी प्रकार वंस साहित्य भी पालि साहित्य का एक भाग है । पालि साहित्य न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक,राजनीतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है । पालि साहित्य भारत के प्राचीन साहित्य के अंतर्गत समाविष्ठ होता है । इसलिए पालि साहित्य का महत्व अनन्यसाधारण है । पालि साहित्य की निर्मिती एवं विकास जानने के लिए दीपवंस ग्रंथ मार्गदर्शक सिद्ध होता है ।
दीपवंस ग्रंथ का परिचय
दीपवंस यह शब्द ‘दीप’ एवं ‘वंस’ इन दो शब्दों से मिलकर बना है । ‘दीप’ शब्द ‘द्वीप’ इस अर्थ को सूचित करता है ।¹ ‘वंस’ शब्द काशाब्दिक अर्थ वंश, परंपरा, इतिहास होता है । ² ‘दीपवंस’ का अर्थ स्पष्टीकरण ‘द्वीप का इतिहास’ अर्थात लंकाद्वीप का इतिहास ऐसा होता है । दीपवंस ग्रंथ की रचना सिंहल (श्रीलंका) में चतुर्थ शताब्दी के मध्य मे हुयी है । ³ दीपवंस के रचनाकार के बारे में विभिन्न मतप्रवाह है । परंतु श्रीलंका में प्रचलीत मतप्रवाह के अनुसार दीपवंस ग्रंथ की रचना भिक्खुणी संघ द्वारा हुयी है । ⁴ दीपवंस इस ग्रंथ की शैली पद्यमय है । इस ग्रंथ मे कुल बाईस परिच्छेद है । प्राचीन भारतीय साहित्य में इतिहास लेखन का अभाव दिखाई देता है, लेकीन दीपवंस ग्रंथ में प्राचीन भारत के साथ ही श्रीलंका की स्थापना से चतुर्थ शताब्दी तक प्राचीन श्रीलंका का क्रमिक इतिहास प्रस्तुत किया गया है । दीपवंसकार पालि साहित्य की निर्मिती, संरक्षण एवं विकास का भी क्रमिक इतिहास प्रस्तुत करता है।
पालि साहित्य का प्रारंभिक स्रोत
पालि साहित्य की उत्पत्ति भगवान बुद्ध से हुई है । भगवान बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्ति से लेकर महापरिनिर्वाण तक लगातार पैंतालीस वर्षों तक धम्मोपदेस दिया । भगवान बुद्ध के उपदेश अर्थात बुद्धवचन का क्रमिक विकास हुआ । यही बुद्धवचन साहित्यीक स्वरूप में तिपिटक के रूप में वर्तमान में उपलब्ध है । तिपिटक को आज भी बुद्धवचन कहा जाता है । इस बुद्धवचन के प्रारंभिक स्रोत भगवान बुद्ध ही है ।
पालि साहित्य का प्रारंभिक स्वरूप
बुद्धवाणी का विकसित रूप पालि तिपिटक साहित्य है ।लेकिन प्रारंभिक अवस्था में तिपिटक साहित्य का स्वरूप वैसा नहीं था जैसा वर्तमान मेंहै ।सर्वप्रथम समग्र बुद्धवचन अथवा बुद्धवाणी को नवांग बुद्धशासन में विभाजित किया गया था ।
सुत्त गेय्यं वेय्याकरणं गाथुदानिकवुत्तकं,
जातकब्भुतवेदल्लं नवङ्र सत्थुसासनं।। ⁵
इस नवांग बुद्धशासन अर्थात शास्ता के शासन में सुत्त, गेय्य, व्याकरण, गाथा, उदान, इतिवुत्तक, जातक, अद्भुत धम्म, वेदल्ल का अंर्तभाव होता है ।
संगीतियों का योगदान
पालि साहित्य की निर्मिती के इतिहास को समझने के लिए संगीतियों का अध्ययन करना आवश्यक है । संगीतियों के अध्ययन के बिना पालि साहित्य की निर्मिती को जानना संभव नहीं है । दीपवंश द्वारा पालि साहित्य की निर्मिती का इतिहास स्पष्ट हो जाता है ।
पठम संगीति
पठम संगीति में बुद्ध के उपदेशों को नवांग बुद्धशासन अर्थात नौ भागों में विभाजित किया गया था । पठम संगीति में सुत्तपिटक का प्रारंभिक स्वरूप तैयार किया गया ।
पविभत्तं इमं थेरं सद्धम्मं अविनासनं।
वग्गपण्णासकं नाम संयुत्तं च निपातकं।
आगमपिटकं नाम अकंसु सुत्तसम्मतं।। ⁶
थेरोंने इस सद्धम्म का वर्गीकरण वग्ग, पण्णासक, संयुक्त और निपात में किया । पठम संगीति में दिघनिकाय, मज्झिमनिकाय, संयुत्तनिकाय,अंगुत्तरनिकाय इसप्रकार ग्रंथों के नाम न प्रयुक्त करते हुए ग्रन्थ में विषयसामुग्री का विभाजन जिस नाम से हुआ है उसी के अनुसार क्रम दिया गया है । पठम संगीतिमें संपूर्ण सुत्तपिटक की रचना नहीं की गई थी क्योंकि इसमें खुद्दकनिकाय का कोई उल्लेख नहीं है । निःसंदेह दीपवंस के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि खुद्दकनिकाय का विकास पठम संगीति के बाद हुआ होगा । सुत्तपिटक के प्रारंभिक रूपों की रचना पठम संगीति में की गई थी । इस प्रारंभिक पिटक को आगमपिटक कहा गया है । दीपवंस के अध्ययन से महत्वपूर्ण
जानकारी मिलती है कि पालि साहित्य नवांग बुद्धशासन के बाद आगमपिटक के क्रम में विकसित हुआ ।
दुतिय संगीति
दुतिय संगीति में विनयपिटक का स्वरूप तैयार हुआ होगा । क्योंकि दुतिय संगीति का आयोजन दस विनयविरुद्ध बात को सुलझाने के लिए किया गया था । इससे यह कहा जा सकता है कि विनयपिटक का विकास दुतिय संगीति तक हुआ होगा । इस संगीति तक अभिधम्म पिटक पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ था । ‘अभिधम्म छप्पकरण’ ⁷से स्पष्ट है कि दुतिय संगीति समय तक अभिधम्म पिटक के छह ग्रंथो का निर्माण किया गया था । इसी प्रकार खुद्दकनिकाय का विकास भी दुतिय संगीति के समय तक हुआ होगा, ऐसा प्रतीत होता है । क्योंकि दीपवंस पटिसंभिदामग्ग, निद्देस, जातक, इन खुद्दकनिकाय के अंतर्गत समाविष्ठ ग्रंथों का नामोल्लेख दुतिय संगीति के संदर्भ में करता है । ⁸ उसीप्रकार विनयपिटक का भी विकास हुआ होंगा क्योकि ‘परिवार’ इस ग्रंथ का भी उल्लेख दुतिय संगीति के संदर्भ में दीपवंस वर्णित करता है । ⁹
ततिय संगीति
दुतिय संगीति के समय तक अभिधम्म के छह ग्रंथों की निर्मिती हुयी थी और ततिय संगीति के काल में कथावत्थु ग्रन्थ की निर्मिती मोग्गलिपुत्ततिस्स थेर द्वारा हुयी ऐसा दीपवंस ग्रंथ स्पष्ट करता है ।¹⁰ अर्थात अभिधम्म पिटक के सातों ग्रंथों की रचना ततिय संगीति के समय तक की गई थी। थेर महिंद का समय ततिय संगीति से सबन्धित है । थेर महिंद के अध्ययन की जानकारी दीपवंस में उपलब्ध है।
निकाये पञ्च वाचेसि सत्त चेव पकरणे ।
उभतो विभड्. विनयं परिवारं च खन्धक ।
उग्गहि वीरो निपुणो उपज्झायस्स सन्तिके।। ’ति ¹¹
थेर महिन्द ने सुत्तपिटक के पाच निकाय, अभिधम्म पिटक के सात ग्रंथ और विनयपिटक के विभंग, खन्धक, परिवार इन ग्रंथों का अध्ययन किया था । इससे पुर्णतः स्पष्ट होता है की ततिय संगीति के समय तक तिपिटक साहित्य की रचना पुर्णतः हो गयी थी। तिपिटक साहित्य लिपीबद्ध संपुर्ण पाली तिपिटक ‘मुखपाठेन आनेसुं’ अर्थात मौखिक परंपरेद्वारा सुरक्षित रखा गया था। तिपिटक लिपीबद्ध राजा वट्ठगामणी के समय में किया गया।
हानिं दिस्वान सत्ता नं तदा भिक्खू समागता।
चिरट्ठितित्थ धम्मस्स पोत्थकेसु लिखापयुं ।। ¹²
पालि तिपिटक साहित्य की संरचना भारत में हुयी। लेकिन तिपिटक साहित्य लिपीबद्ध श्रीलंका मे किया गया । पालि साहित्य की निर्मिति में श्रीलंका का यह महान योगदान है । अट्ठकथा साहित्य का विकास भारत से श्रीलंका में तिपिटक साहित्य ही गया था अथवाा अट्ठकथा साहित्य भी गया था इस प्रश्न के बारे में निश्चित मत प्राप्त नहीं होते है लेकिन अट्ठकथा साहित्य का विकास श्रीलंका में हुआ, यह दीपवंस ग्रंथ द्वारा स्पष्ट होता है । उसीप्रकार तिपिटक साहित्य के जैसे ही अट्ठकथा साहित्य भी मौखिक परंपरेद्वारा जतन किया गया था ।
पिटकत्तयपालि च तस्सा अट्ठकथं पि च ।
मुखपाठेन आनेसुं पुब्बे भिक्खू महामती ।। ¹³
प्रारंभिक पालि साहित्य की संरचना एवं संकलन मौखिक पद्धती द्वारा हुयी थी, ऐसा इसके द्वारा कहा जा सकता है । अर्थात प्रारंभिक पालि साहित्य की निर्मिती मौखिक परंपरा द्वारा हुयी थी, ऐसा इसके द्वारा स्पष्ट होता है ।
निष्कर्ष
दीपवंस वंस साहित्य का महत्वपूर्ण ग्रंथ है। दीपवंस के द्वारा पालि साहित्य की निर्मिति,संकलन, संरक्षण एवं लिपीकरण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। पालि तिपिटक साहित्य का प्रारंभिक स्रोत भगवान बुद्ध है। बुद्धवाणी अर्थात बुद्धवचन प्रारंभिक स्वरूप में नवांग बुद्धशासन में विभाजित थी। संगीतियों द्वारा पालि तिपिटक का विकास हुआ। अट्ठकथा साहित्य का विकास श्रीलंका में हुआ। पालि तिपिटक साहित्य और अट्ठकथा साहित्य लिपिबद्ध श्रीलंका में हुए। दीपवंस ग्रंथ के अध्ययन द्वारा पालि साहित्य के निर्मिति का इतिहास उजागर होता है।
संदर्भ ग्रंथ सूची
1. कौसल्यायन, डॉ. भदन्त आनन्द पालि-हिन्दी कोश, सुगत प्रकाशन,
नागपूर,प्र. सं. 1989, पृक्र.150.
2. तत्रेव पृ. क्र. 284.
3- Law, B.C., A, History of Pali Literature, Indica Books, Varanasi, Edition- 2000, P. No. 511.
4. Archievesdailynews, U.K.
5. सिंह डॉ.परमानन्द संपा, दीपवंस, बौद्ध आकर गं्रथमाला,
वाराणसी 1996, गाथा क्र.20, पृ.क्र.58.
6. तत्रेव, गाथा क्र.21, पृ.क्र. 58.
7. तत्रेव, गाथा क्र. 76. पृ.क्र. 70.
8. तत्रेव, गाथा क्र. 76.
9. तत्रेव, गाथा क्र. 76.
10. तत्रेव, गाथा क्र.55, पृ.क्र. 122.
11. तत्रेव, गाथा क्र.42, पृ.क्र. 120.
12. तत्रेव, गाथा क्र.21, पृ.क्र. 284.
13. तत्रेव, गाथा क्र.20.