प्रस्तावना :

तिपिटक साहित्य को पूर्ण स्वरूप देने में तृतीय बौद्ध संगीति ने महत्वपूर्ण कार्य किया है | सुत्तपिटक, विनयपिटक एवं अभिधम्मपिटक के सम्पूर्ण ग्रंथों की रचना तृतीय बौद्ध संगीति में पूर्ण हुयी | तिपिटक को निश्चित आकार तृतीय बौद्ध संगीति में प्राप्त हुआ | निश्चितही पालि तिपिटक साहित्य का उगम, क्रमिक विकास जानने के लिए जिसप्रकार प्रथम एवं द्वितीय बौद्ध संगीति महत्वपूर्ण कार्य करती है, उसीप्रकार तिपिटक साहित्य का सम्पूर्ण विकास जानने के लिए तृतीय बौद्ध संगीति ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है |

उसीप्रकार बौद्ध धम्म का  विविध देशों  में प्रचार-प्रसार करने का महत्वपूर्ण कार्य तृतीय बौद्ध संगीति ने किया  है |

कारन :

राजा कालाशोक के काल से सम्राट अशोक के काल पर्यन्त बौद्ध संप्रदाय अठरा निकायों में विभक्त हो गया था | जिनमे थेरवादी संप्रदाय के बारह और महासांघिक संप्रदाय के छः निकाय थे | इन सभी बौद्ध सम्प्रदायों के विभिन्न सिद्धांत थे | सम्राट अशोक संघ को अत्याधिक दान देते थे, जिस कारन अन्य तीर्थिकों का लाभ-सत्कार कम हुआ   | दान के प्रलोभन से अन्य तीर्थिक भी चोरी से काषाय वस्त्र परिधान कर के संघ में प्रविष्ठित हुए और वे संघ को विभिन्न प्रकार से  दूषित करने लगे |   इस विषय में दीपवंस में निम्न जानकारी दी गयी है –

अट्ठंसु सत्तवस्सानि अहोसि वग्गुपोसथो ‘ अर्थात इस कारन से नियमित उपोसथ भी सात वर्ष तक नहीं हो पाया | इस परम्परा को फिर से प्रारम्भित करने के लिए भेजे गए मुर्ख अमात्य ने कुछ भिक्खुओं की हत्या कर दी | इस घटना से सम्राट अशोक अत्यंत दुक्खी हुए | उस समय सम्राट अशोक ने मोग्गलिपुत्त तिस्स स्थविर से अनुरोध करके तृतीय बौद्ध संगीति आयोजित कराई |

राहुल सांकृत्यायन इन्होने पालि साहित्य का इतिहास’ पुस्तक में कहा है- थेरवाद या विभज्जवाद को बुद्ध  का वास्तविक मन्तव्य निश्चित करने के लिए तृतीय बौद्ध संगीति आयोजित की गयी|’

काल :

तृतीय बौद्ध संगीति भगवान बुद्ध के महापरिनिब्बान के २३६ सालों बाद अर्थात इसा पूर्व ३२५ में आयोजित की गयी |

अध्यक्ष :

तृतीय बौद्ध संगीति मोग्गलिपुत्त तिस्स स्थविर के नेतृत्व में संपन्न हुयी | तृतीय बौद्ध संगीति में मोग्गलिपुत्त तिस्स स्थविर ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है | मोग्गलिपुत्त तिस्स स्थविर के विषय में प्रथम वंस ग्रन्थ दीपवंस  में कहा है –

मोग्गलिपुत्तो महापञ्ञो परवादप्पमद्दनो |

थेरवादं दळहं कत्वा सङ्रहं ततियं कतो ||

अर्थात महाप्रज्ञ,परवाद विध्वंसक  मोग्गलिपुत्त स्थविर ने थेरवाद को पुनः दृढ़ कर तृतीय धम्मसंगीति का सफल आयोजन किया |

भिक्खु धम्मरक्खित, आधुनिक पालि विद्वान पालि साहित्य का इतिहास’ पुस्तक में उपरोक्त विधान की पुष्टि करते हुए कहते है –तृतीय बौद्ध संगीति के प्रधान मोग्गलिपुत्त तिस्स स्थविर थे |’

सहभागी भिक्खु :

दीपवंस ग्रन्थ में तृतीय बौद्ध संगीति में सम्मिलित भिक्खुओं के बारे में निम्न जानकारी दी गयी है –

अरहन्तानं सहस्सं उच्चिनित्वान नायको |

 वरं वरं गहेत्वान अकासि     धम्मसङ्गहं   ||

अर्थात उन महास्थविर ने उस समय के विशाल भिक्खुसंघ में से श्रेष्ठ विद्वान एक हजार भिक्खुओं का चयन कर उनके साथ यह धम्मसंगायन संपन्न किया | दीपवंस  के विधान की पुष्टि पालि साहित्य के अन्य ग्रन्थ भी करते है |

स्थान :

तृतीय बौद्ध संगीति का स्थान पाटलिपुत्र था, जिसे कुसुमपुर भी कहा जाता था| पाटलिपुत्र के असोकारामविहार में तृतीय बौद्ध संगीति संपन्न हुयी |

कालावधि :

नवमासेहि निट्ठासि ततियो सङ्गहोअयं’ अर्थात तृतीय बौद्ध संगिति नौ माह की अवधि में निष्पन्न हुयी | दीपवंस के प्रस्तुत विधान का समर्थन महावंस एवं अन्य वंस ग्रन्थ भी करते है |

राजाश्रय :

तृतीय बौद्ध संगीति की उचित व्यवस्था सम्राट अशोक ने की थी | अर्थात सम्राट अशोक ने तृतीय बौद्ध संगीति को राजाश्रय प्रदान किया था | सम्राट अशोक ने तृतीय बौद्ध संगीति को संरक्षण प्रदान किया था |

प्रमुख कार्यवाही :

तृतीय बौद्ध संगीति में निम्न प्रमुख कार्यवाही की गयी –

१ तृतीय बौद्ध संगीति में संघ को विशुद्ध किया गया | स्तेयसंवासक भिक्खु के वस्त्रादि भिक्खुचिन्ह वापिस लेकर उन्हें संघ से निष्काषित किया गया |

२ सतरा सम्प्रदायों के मतों का खंडन किया गया |

कथावत्थु  ग्रन्थ की रचना की गयी |

४ विविध प्रदेश एवं विविध देशों में बौद्ध धम्म के प्रचार-प्रसार का महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया |

५ तिपिटक का स्वरूप निश्चित किया गया |

विविध ग्रंथों में उल्लेख :

विनयपिटक  के चुल्लवग्ग  में प्रथम और द्वितीय बौद्ध संगीति का वर्णन किया गया है, परन्तु तृतीय बौद्ध संगीति का वर्णन विनयपिटक  के चुल्लवग्ग में नहीं किया गया है | सर्वप्रथम दीपवंस  में तृतीय संगीति का वर्णन उपलब्ध होता है | दीपवंस  के पश्चात बुद्धघोष कृत समन्तपासादिका  में तृतीय बौद्ध संगीति का वर्णन किया गया है | महावंस, सासनवंस,सद्धम्मसंगह, इ.बौद्ध ग्रंथों में भी तृतीय बौद्ध संगीति का वर्णन किया गया है |

१० महत्व :

सुत्तपिटक, विनयपिटक  एवं अभिधम्मपिटक  इन तिपिटक साहित्य के अंतर्गत समाविष्ट ग्रंथों की रचना तृतीय बौद्ध संगीति में पूर्ण हुयी यह कथावत्थु  ग्रन्थ के रचना द्वारा अधिक स्पष्ट होता है | जिसके विषय में दीपवंस  में कहा गया है –

सासनं जोतयित्वान कथावत्थुं पकासयि’(स्वरचित कथावत्थु ग्रन्थ का उस धम्मसंगीति में प्रकाशन किया गया)

तृतीय बौद्ध संगीति में संघ को विशुद्ध करने के निर्णय के साथ बौद्ध धम्म के प्रचार-प्रसार का अत्याधिक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया | बौद्ध धम्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए तृतीय बौद्ध संगीति सहाय्यक सिद्ध हुयी |

आज बौद्ध धम्म विश्व का चौथे क्रमांक का प्रमुख धम्म है | निश्चितही यह  तृतीय बौद्ध संगीति का ही परिणाम है |

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