प्रस्तावना :

भगवान बुद्ध ने समस्त मानव जाती के कल्याण के लीये बुद्धत्व प्राप्ती से महापरिनिब्बाण पर्यंत निरंतर पैतालीस वर्षो तक धम्मोपदेश दिया। बुद्धवाणी, बुद्धवचन द्वारा ही पालि तिपिटक साहित्य की निर्मिती हूयी है। प्राचीन भारतीय साहित्य में इतिहास लेखन का अभाव पाया जाता है, परंतु पालि साहित्यद्वारा भारत के प्राचीन, सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक, भौगोलिक इतिहास का परिचय हमे प्राप्त होता है।

साथ ही पालि साहित्य ज्ञान का विशाल और अथांग महासागर है। पालि साहित्य में प्राचीन औषधियों एवं प्राचीन चिकित्सा पद्धती के विषय में भी महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होती है। पालि साहित्य प्राचीन औषधियों एवं प्राचिन चिकित्सा पद्धती के समृद्धशाली इतिहास से सम्पन्न है।

स्वास्थ की परिभाषा :

विश्व स्वास्थ संगठन (WHO) ने स्वास्थ या आरोग्य की निम्न परिभाषा की है-

“’दैहिक मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना’’

अर्थात आरोग्य की परिभाषा सिर्फ शारीरिक और मानसिक स्वरूप तक ही सीमित नही है तो आरोग्य की परिभाषा मै शारीरिक, भावनिक और सामाजिक सभी स्वास्थो का समावेश होता है। पालि साहित्य के अध्ययन द्वारा यह स्पष्ट होता है कि भगवान बुद्ध ने भी शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रोगो पर गहन चिंतन किया है।

बुद्ध , शरीररोग चिकित्सक :

गौतम बुद्ध महान चिकित्सक थे। भगवान बुद्ध को शरीरविज्ञान का भी बहुत अच्छा ज्ञान था। महासतिपट्ठानसुत्त मे शरिरविज्ञान का  विश्लेषण किया गया है।गिरिमानन्द सुत्त में शरीर के विभिन्न अवयवों मे उत्पन्न होने वाले रोग के विषय मे जानकारी प्राप्त होती है। विनयपिटक  के भेसज्जक्खन्धक  द्वारा विभिन्न रोगो के उपचार एवं प्राचीन औषधियो के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।

बुद्ध ,मनोरोग चिकित्सक :

पालि साहित्य में शारिरीक रोग चिकित्सा एवं मनोरेाग चिकित्सा के विषय में भी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। बुद्ध कुशल मनोवैज्ञानिक थे। अभिधम्मपिटक  को बौद्धो का मनोविज्ञान कहा जाता है। । पुग्गलपञ्ञति  ग्रंथ में बौद्ध मनोविज्ञान पर आधारीत 390 मानस स्वभाव का विश्लेषण किया गया है। भेसज्जमञ्जुसा यह पालि साहित्य का चिकित्साग्रंथ है।  भेसज्जमञ्जुसा  मे बुद्ध को ‘मनोरोगतिकिच्छक’’ अर्थात मनोरोगचिकित्सक कहा गया है।

बुद्ध,सामाजिक रोग चिकित्सक :

मनुष्य सामाजिक प्राणी है। अच्छा सामाजिक जीवन व्यतित करने के लीये समाज मे शांती, सुव्यवस्था, अहिंसा का होना आवश्यक है |बौद्ध धम्म ने संपूर्ण विश्व को शांती का संदेश दिया है। बुद्ध अहिंसावादी थे। बुद्ध कहते है –

न हि वेरेन वेरानि सम्मन्तीध कुदाचनं।
अवेरेन च सम्मन्ति एस धम्मो सनन्तनो।।

अर्थात इस संसार में वैमनस्य से वैमनस्य कभी शांत नही होना है, अवमैनस्य (मैत्री) द्वारा वैमनस्य शान्त होता है’ यही शाश्वत नियम है।

 पालि साहित्य के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि बुद्ध के अहिंसावादी सिद्धांत द्वारा तत्कालीन समाज में अपराधिक कृत्य कम होकर शांति, सद्भावना प्रस्थापित हुयी।

चिकित्सा विज्ञान में बौद्ध दर्शन का प्रभाव :

गौत्तम बुद्ध महान वैज्ञानिक थे। बौद्ध धम्म यह मनुष्यों को दुःखो से मुक्त कराकर सुख की ओर, निर्वाण की ओर अग्रेसर करानेवाला मार्ग है। बुद्ध ने ’धम्मरूपी औषध देकर ’दुःख’ रूपी व्याधि से ग्रस्त मनुष्यो को व्याधिमुक्त होने का उपदेश दिया है, इसलिये बुद्ध को ‘भेसज्जगुरू‘ कहा जाता है।

बुद्ध के सिध्दान्त न सिर्फ मनुष्य को शारीरिक एवं भावनिक आरोग्य प्रदान करते है, बल्की साथही संपुर्ण मानव जाति, समाज को स्वस्थ सामाजिक जीवन भी प्रदान करते है।

चार आर्य सत्य :

चत्तारि अरिय सच्चानि निम्न प्रकार से है –
(1) दुक्ख अरियसच्च
(2) दुक्ख समुदय अरियसच्च
(3) दुक्ख सनिरोध अरियसच्च
(4) दुक्ख निरोधगामिनी पटिपदा अरियसच्च

अर्थात: (1) दुःख है यह सत्य है

(2) दुःख यह कारणों द्वारा उत्पन्न होता है।

(3) दुःख उत्पन्न होता है तो उसका निवारण भी कीया जा सकता है।

(4) दुःख निवारण के मार्ग का अनुसरण करके दुःख का निवारण किया जा सकता है।

रोग एवं चार आर्य सत्य का सम्बन्ध :

भगवान बुद्ध का प्रथम उपदेश ‘धम्मचक्कपवत्तन’ है जिसे ‘धम्मचक्कपवत्तन सुत्त‘ भी कहा जाता है। धम्मचक्कपवत्तन सुत्त  में बुद्ध ने चत्तारि अरिय सच्चानि (चार आर्य सत्य) का उपदेश दिया है। दुक्ख अरियसच्च में दुःखो के कारणों को विश्लेषीत करते हुये कहते है –

‘ब्याधिपि दुक्खो’’ अर्थात रोग या व्याधि भी दुःख निर्माण होने का कारण है।

चिकित्साविज्ञान की परिभाषा :

“रोग का निदान, उपचार और रोकथाम के अध्ययन से संबंधित विज्ञान की शाखा को चिकित्साविज्ञान कहते है।”

चिकित्सा विज्ञान में चार आर्य सत्य का प्रभाव :

चिकित्साविज्ञान का अध्ययन करने पर ‘चार आर्यसत्य’’ का प्रभाव चिकित्सक पर भी स्पष्ट दिखाई देता है। चिकित्सक भी रोगी को रोगमुक्त अर्थात रेाग से उत्पन्न दुःख से मुक्त कराने के लिए –
(1) रोग
(2) रोग के उत्पत्ति कारण अर्थात रोग का निदान
(3) रोकथाम अर्थात रोग का उपचार
(4) रोग के उपचार का मार्ग (औषधोपचार)

इन चार तथ्यों का अनुसरन करता है।अर्थात चिकित्साविज्ञान का आधार स्तम्भ ही चार आर्य सत्य के सिद्धांत से प्रभावित है |

उसीप्रकार चिकित्सा विज्ञान चार ब्रम्हविहार, शील, अहिंसा, अनित्यता इ. अनेक बौद्ध दार्शनिक सिद्धांतो से भी प्रभावित है।

बौद्ध दर्शन का प्रभाव भारत एवं विश्व के चिकित्सा विज्ञान पर हुआ है। प्राचीन चिकित्सक एवं आधुनिक चिकित्सक भी बौद्ध दर्शन से प्रभावित है |

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