प्रस्तावना :

पालि साहित्य की भाँति बौद्ध संस्कृत साहित्य की भी समृद्धशाली साहित्य परंपरा रही है। अश्वघोष,  बुद्धपालित, भावविवेक, असंग, वसुबन्धु , दीङ्नाग, धर्मकीर्ति इन्होंने संस्कृत बौद्ध साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया हैं। उसीप्रकार आचार्य नागर्जुन ने भी  संस्कृत बौद्ध साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया हैं।

नागार्जुन की जीवनी :

कुमारजीव द्वारा चीनी भाषा में अनुवादित नागार्जुन की जीवनी के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है। कुमारजीव के वर्णनानुसार आचार्य नागार्जुन का जन्म विदर्भ के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। आचार्य नागार्जुन कुशाग्र बालक थे। उन्होंने वैदिक साहित्य तारुण्यावस्था में बौद्ध धम्म में पबज्ज-उपसंपदा प्राप्त की। कुमारजीव के वर्णानुसार आचार्य नागार्जुन ने 90 दिन में सम्पूर्ण तिपिटक का अध्ययन किया। आचार्य नागार्जुन ने अपना अधिकांश जीवन नालंदा महाविहार में व्यतीत किया।

आचार्य नागार्जुन के विषय में काफी मतभिन्नताएँ :

आचार्य नागार्जुन के विषय में काफी मतभिन्नताएँ दिखाई देती है। आचार्य नागार्जुन के नाम से एक या एक से अधिक विद्वान हुए है, इस विषय में निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं होती है। नागार्जुन के काल के बारे में भी बहुत अधिक मतभिन्नताएँ है की कोई निश्चित समय सिद्ध कर पाना अत्यंत कठिन है।

आचार्य नागार्जुन के विषय में  भ्रांतियाँ :

आचार्य नागार्जुन के विषय में काफी भ्रांतियाँ फैली है। कुछ विद्वान मानते है की ‘नागार्जुन’ नामक विख्यात बौद्ध दार्शनिक, तांत्रिक, आयुर्वेदाचार्य एवं रसायनतज्ञ विद्वान भिन्न- भिन्न चार व्यक्ति थे, तो कुछ विद्वानों का मत है, वह  एक ही आचार्य नागार्जुन है।

आचार्य नागार्जुन और  प्राचीन विदर्भ का संबंध :

आचार्य नागार्जुन का संबंध प्राचीन विदर्भ से रहा होंगा। युआन-च्वांग ने जब प्राचीन विदर्भ की यात्रा की थी तब उन्होंने इस प्रदेश को नागार्जुन-देश कहकर पुकारा था। इससे यह स्पष्ट होता है विदर्भ का संबंध आचार्य नागार्जुन के जीवन से रहा होंगा। नागपुर से लगभग 50 किलोमीटर और रामटेक से 4 किलोमीटर दुरी पर नागार्जुन पहाड़ी स्थित है, जिसका संबंध आचार्य नागार्जुन से रहा है।

आचार्य नागार्जुन  की आयुर्वेद  में ग्रन्थ निर्मिति :

आचार्य नागार्जुन बौद्ध धम्म-दर्शन, रसायनशास्त्र, के साथ वैद्यक विज्ञान में प्रवीण थे। रसायन शास्त्र में आचार्य नागार्जुन ने रसरत्नाकार, रसमंगलम ग्रन्थ की निर्मिति की थी।आयुर्वेद ग्रन्थ में आचार्य नागार्जुन ने सुश्रुतसंहिता का पूरक भाग उत्तरतंत्र की रचना की, साथ ही आरोग्यमंजरी, कक्षपुटतंत्र, आरोग्यसार इनके   प्रसिद्ध ग्रन्थ है।

निश्चितही आचार्य नागर्जुन ने  संस्कृत बौद्ध साहित्य,आयुर्वेद साहित्य  के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया हैं।

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